

Azadi Ka Amrit Mahotsav उमाबाई कुंदापुर का नाम भले कर्नाटक में ही ज्यादा लिया जाता हो, पर इतिहास खंगालने पर पता चलता है कि आजादी की लड़ाई, खासकर महिला उत्थान के क्षेत्र में पूरे देश ने उनसे प्रेरणा ग्रहण की। कर्नाटक ही नहीं, पूरे देश में उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वाद्र्ध के संक्रमण काल में महिलाओं का समाज में खुलकर सामने आना आसान न था। इसके बावजूद कुछ नायिकाओं ने ऐसा किया और इन्हीं में से एक भवानी का जन्म वर्ष 1892 में कर्नाटक के मंगलौर में गोलिकेरी कृष्ण राव और जुंगबाई की संतान के रूप में हुआ।
बाद में बंबई (अब मुंबई) आए इस परिवार की कन्या का विवाह लगभग नौ साल की उम्र में ही प्रगतिशील विचारों वाले आनंदराव कुंदापुर के पुत्र संजीवराव कुंदापुर से हुआ। इसके बाद भवानी गोलिकेरी उमाबाई कुंदापुर कहलाने लगीं। ससुर आनंदराव महिला शिक्षा आंदोलन से प्रभावित थे। इसलिए बहू उमाबाई की भी शिक्षा जारी रही। उमाबाई बाद में अपने ससुरजी के साथ बंबई में गोंडवी महिला समाज के जरिए महिलाओं को शिक्षित करने में लग गईं।