पौड़ी गढ़वाल, 15 अप्रैल।
लोकसभा चुनाव के मद्देनजर उत्तराखंड़ फोर्सेस, सीएसीएल तथा आरटीई फोरम ने संयुक्त रूप से भारत के बच्चों की शिक्षा, पोषण और बाल श्रम से सुरक्षा को लेकर सार्वजनिक घोषणा पत्र जारी किया है। घोषणा पत्र को सभी राजनीतिक दलों, प्रत्याशियों और समुदायों के पास तक पहुंचाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है।
संयुक्त रूप से तैयार किए गए सार्वजनिक घोषणापत्र के बारे में जानकारी देते हुए उत्तराखंड फोर्सेस के कोर ग्रुप सदस्य डाॅ वीपी बलोदी ने बताया कि घोषणापत्र में बच्चों से जुड़े मुद्दों को शामिल किया गया है। कहा कि बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम के लागू होने के 14 साल बाद भी एक सामान्य स्कूल प्रणाली के रूप में शिक्षा के सार्वभौमिक एवं उच्च गुणवत्ता वाले मानकों को सुनिश्चित नही किया जा सका है। स्थित यह है कि आरटीई का पालन सिर्फ 25 प्रतिशत स्कूलों में ही हो पा रहा है। स्कूलों में आठ लाख से भी अधिक शिक्षकों के पद खाली चल रहे हैं और वर्तमान में सभी प्रदेशों में संविदा शिक्षकों की नियुक्ति की जा रही है जिससे उन्हें सामाजिक सुरक्षा का लाभ तक नहीं मिल पा रहा है। यही नहीं जहां पर नियमित शिक्षक हैं भी वहां पर उनके ऊपर गैर शैक्षणिक कार्यों का दबाव रहता है। 20 से 25 प्रतिशत तक का समय शिक्षकों का गैर शैक्षणिक कार्यों में ही चला जाता है। आज तमाम योजनाओं और दावों के बाद भी 9 लाख से भी अधिक बच्चे देश में स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। स्कूल से बाहर रहने से बच्चे न केवल शिक्षा से वंचित हो रहे हैं बल्कि बच्चों का बाल श्रम में जाने का जोखिम भी अधिक हो जाता है।
घोषणा पत्र में कहा गया है कि कानून होने के बाद भी शिक्षा के अधिकार में कई तरह की असमानताएं देखी जा रही है। देश मे लगातार शिक्षा का व्यवसायीकरण बढ रहा है। देश भर में निजी स्कूलों की संख्या लगातार बढ रही है, जिससे समाज में शिक्षा भी अमीरी और गरीबी में बंटती हुई दिख रही है। कहा गया है कि अब आरटीई अधिनियम के विस्तार का समय आ गया है, जिसमें 6 वर्ष से कम और 14 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों के लिए शिक्षा के अधिकार को कानूनी अधिकार दिया जाय। साथ ही 18 वर्ष के बच्चों को किसी भी प्रकार के बाल श्रम से संरक्षित किया जाना भी आवश्यक है।
फोर्सेस उत्तराखण्ड कोर ग्रुप सदस्य व पराज के संस्थापक डॉ० वीपी बलोदी ने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति की समीक्षा करने की आवश्यकता है ताकि शिक्षा के अधिकार की भावना का बेहतर क्रियान्वयन हो सके।