बीएचयू और सीसीएमबी हैदराबाद के वैज्ञानिकों ने लद्दाख के लोगों पर चीन के दशकों पुराने दावे की हवा निकाल दी है। चीन का दावा रहा है कि लद्दाख के लोग मूलरूप से चीन के हैं। इसी के बूते वह इस भौगोलिक क्षेत्र पर अपन दावा करता है। जबकि बीएचयू के वैज्ञानिकों के शोध में यह तथ्य सामने आया है कि लद्दाखी लोगों के जीन भारत, तिब्बत और भूटान से मिलते हैं। यह शोध अमेरिका की अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका ‘रिसर्च रिपोर्ट्स के अक्तूबर-2023 के अंक में प्रकाशित हुआ है।
बीएचयू, सीएसआईआर-सीसीएमबी (सेंटर फॉर सेल्युलर एंड मॉलीक्यूलर बायोलॉजी) के जंतु और पुरातत्व विज्ञानियों के दल ने लद्दाख में जैव विविधता पर यह अध्ययन पिछले वर्ष अगस्त में किया था। लद्दाख में आज भी लगभग तीन लाख की आबादी देखी जा सकती है। अब तक के शोधों में यह पता नहीं चल सका था कि इस क्षेत्र की पुरा आनुवंशिक और पुरातात्विक विविधता स्वतः विकसित हुई या दूसरे भौगोलिक क्षेत्रों से यहां पहुंची। इस शोध के लिए टीम ने मध्य लद्दाख में लगभग साढ़े 12 हजार फीट की ऊंचाई पर दो स्थानों से लिए गए 122 सैंपलों का अध्ययन किया। वहां के लोगों में भारत और तिब्बत का जीन पाया गया। इस शोध में यह साबित हुआ है कि चीन का लद्दाख के लोगों से संबंध का दावा आधारहीन है।
यह स्पष्ट हुआ कि लद्दाख के लोग भारत एवं तिब्बत के अनुवांशिकी का मिश्रण हैं। यह आनुवांशिक मिश्रण 60% भारत और पश्चिमी यूरेशिया का है जबकि शेष 40% तिब्बत से संबंधित है। भारत की आनुवंशिकता मैदानी भागों से आई है। पश्चिमी यूरेशिया की अनुवांशिकता का संबंध मध्य एशिया से मिला है जिसके प्रमाण भित्तिचित्रों में भी हैं। तिब्बत की आनुवंशिकी नेपाल एवं भूटान के बड़े भूभाग में भी पाई जाती है। इस शोध ने यह भी स्पष्ट किया है कि ये आनुवंशिकी घटक चीन की आनुवंशिकी से पूर्णतः भिन्न हैं। इसमें कुछ और शोध परिणाम अभी आने हैं।